August 11, 2008

उसका जाना

उसको पता है उसके जाने का गम होगा , नहीं पता है ये के कैसे कम होगा।

उसकी नज़रों में वो दर्द देखा था उस दिन, जिसका असर जाने कब कम होगा।

July 7, 2008

वफ़ा की बात.

क्यूँ बिलखते हो , चिल्लाते हो, हाए हाए करते हो,
ये तुम्हारी ही खोदी ज़मी है जिसे भरने चला हूँ मैं।
इक ज़रा सी चोट देकर हंस दिए थे तुम कभी,
अब वही नासूर हैं ,जो मरहम करने चला हूँ मैं।
उम्र भर इन्तेज़ार की हद ढूँढ़ते रह गए हम तो,
जो ख़त्म हुआ तो पूछते हैं क्यूँ मरने चला हूँ मैं।
मेरी वफ़ा का ज़िक्र कभी किया था जिस किसी ने,
उसके ही बगल की कब्र में रहने चला हूँ मैं।
वफ़ा की बात देखिये दो फूल रख के चल दिए,
और पिछली दफा के सुखों को अब चुनने चला हूँ मैं।

July 2, 2008

जिंदगी

जिंदगी मुझ से इन दिनों ज़रा खफा सी है।
किसी बेसाख , बेदर्द , बेवफा सी है।

भरे सावन को पतझड़ बना दिया इसने,
आज जाने ये कैसी चली हवा सी है।

सुबह आज फिर दोपहर होने चली थी,
गरज गरज जाने कहाँ से आई ये घटा सी है।

जिसकी याद में गुज़रे थे बीते दिन अपने,
उसके आने की ख़बर फ़िर से जवां सी है।

कितनी मोहब्बत उन्हें हम से है,
उनकी खामोशी ने की दास्ताँ बयां सी है।



सुकून

सुकून ऐ जिंदगी ढूँढते रह जायेंगें ।
तेरे बिना जिए तो मर के रह जायेंगे ।

जब जुबाँ ऐ शायर कोई बात कहने जाए ,
हर एक अल्फाज़ के मायने ढूँढते रह जायेंगे।

एक बार सुबह जवान होने की कोशिश तो करे,
बादल यूँ ही आसमां में घुमते रह जायेंगे।

जब आखरी साँस कोई शख्स लेता है,
करीब वाले सब देखते रह जायेंगे।

May 27, 2008

तेरी ख़बर

अगर किसी रोज़ तेरे आने की ख़बर आ जाए,

जिस्म बेजान भी हो तो वापिस ये जाँ आ जाए।

तेरे दीवाने ने तेरे दर से मोहब्बत कर ली,

जाए किसी जानिब भी मगर लौट के फिर आ जाए।

जितने पैगाम तुझे भेजे हैं तेरे आशिक ने,

उतनी मेहनत से खुदा ढूंदो, तो वो मिल जाए।

कितनी शिद्दत से तुझे याद किया जाता है,

कोई समझे तो ये पैगाम तुझे दे आए।

अब तो हर वक्त ऐ "मन"इसी दुआ में कटता है।

तू अगर आए तो एक बार नज़र आ जाए।

May 26, 2008

चिराग

दरवाज़े की तख्ती पे मेरा नाम भी हो,
और ओहदा "मालिक मकान " भी हो।
कुछ एक लाख की बात है मिल ही जायेंगे,
इसी आस कफ़न किसी दिन सिल ही जायेंगे।
ख़ुद नहीं तो, अपने "चिराग" में तेल तो होगा,
उसका खुशनसीबी से कम से कम मेल तो होगा।
यही सोच के सुबह जाता है, देर रात आता है,
ये आम आदमी पूरी ज़िंदगी काट जाता है।

May 25, 2008

तेरे इश्क में

हमतेरे इश्क मे इतने मजबूर हो गए,
साँस लेने को फ़िर मजबूर हो गए ।

बस में होता तो दूरियां मिटा देते,
बस दूरियों से ही तो मजबूर हो गए।

उन के इजहार का असर ज़रा देखिये,
हम इकरार करने पे मजबूर हो गए ।

जो खाब देखो तो इस शिद्दत से देखा,
खाब ज़िंदगी बनने पे मजबूर हो गए।

आज लिखते हैं तो कलम रुक सी जाती है,
मगर रुक रुक के लिखने पे मजबूर हो गए ।

हमतेरे इश्क मे इतने मजबूर हो गए,
साँस लेने को फ़िर मजबूर हो गए ।

तुम्हारी याद आए तो मैखाने की तरफ़ चल दिए , ना आए तो भी मैखाने की तरफ़ चल दिए , ज़िंदगी गुज़र जायेगी इसी तरह , ये सोच कर ...