जिंदगी मुझ से इन दिनों ज़रा खफा सी है।
किसी बेसाख , बेदर्द , बेवफा सी है।
भरे सावन को पतझड़ बना दिया इसने,
आज जाने ये कैसी चली हवा सी है।
सुबह आज फिर दोपहर होने चली थी,
गरज गरज जाने कहाँ से आई ये घटा सी है।
जिसकी याद में गुज़रे थे बीते दिन अपने,
उसके आने की ख़बर फ़िर से जवां सी है।
कितनी मोहब्बत उन्हें हम से है,
उनकी खामोशी ने की दास्ताँ बयां सी है।
कुछ ऐसी बातें जो दिल को छू जाएं , कुछ ऐसी बातें जो दिल से निकले, कुछ ऐसी ही बातें इस ब्लॉग में ग़ज़ल , नज्म और कविता के ज़रिये पेश करने की कोशिश की है। उम्मीद है पढने वालों को पसंद आएंगी।
July 2, 2008
सुकून
सुकून ऐ जिंदगी ढूँढते रह जायेंगें ।
तेरे बिना जिए तो मर के रह जायेंगे ।
जब जुबाँ ऐ शायर कोई बात कहने जाए ,
हर एक अल्फाज़ के मायने ढूँढते रह जायेंगे।
एक बार सुबह जवान होने की कोशिश तो करे,
बादल यूँ ही आसमां में घुमते रह जायेंगे।
जब आखरी साँस कोई शख्स लेता है,
करीब वाले सब देखते रह जायेंगे।
तेरे बिना जिए तो मर के रह जायेंगे ।
जब जुबाँ ऐ शायर कोई बात कहने जाए ,
हर एक अल्फाज़ के मायने ढूँढते रह जायेंगे।
एक बार सुबह जवान होने की कोशिश तो करे,
बादल यूँ ही आसमां में घुमते रह जायेंगे।
जब आखरी साँस कोई शख्स लेता है,
करीब वाले सब देखते रह जायेंगे।
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उसको पता है उसके जाने का गम होगा , नहीं पता है ये के कैसे कम होगा। उसकी नज़रों में वो दर्द देखा था उस दिन, जिसका असर जाने कब कम होगा।