July 2, 2008

जिंदगी

जिंदगी मुझ से इन दिनों ज़रा खफा सी है।
किसी बेसाख , बेदर्द , बेवफा सी है।

भरे सावन को पतझड़ बना दिया इसने,
आज जाने ये कैसी चली हवा सी है।

सुबह आज फिर दोपहर होने चली थी,
गरज गरज जाने कहाँ से आई ये घटा सी है।

जिसकी याद में गुज़रे थे बीते दिन अपने,
उसके आने की ख़बर फ़िर से जवां सी है।

कितनी मोहब्बत उन्हें हम से है,
उनकी खामोशी ने की दास्ताँ बयां सी है।



1 comment:

Rishabh Makrand said...

Zindagi jaab sath na de to maut se kaam lo...
jaab muskurahat na ho pass to aasonwon ka daman tham lo...

तुम्हारी याद आए तो मैखाने की तरफ़ चल दिए , ना आए तो भी मैखाने की तरफ़ चल दिए , ज़िंदगी गुज़र जायेगी इसी तरह , ये सोच कर ...