March 17, 2010

बे सब्र

सब्र का इम्तिहान चल रहा है कुछ इस तरह, के अब बेसब्र हो चले हैं।

पूरे हो रहें हैं अरमान कुछ इस तरह के अरमान कम हो चले हैं।

जी भर सा गया है इस ख़ुशी से, बहुत दिन देख ली हमने।

जैसे जैसे दिन गुज़र रहे हैं , हम खुशमिजाज़ कम हो चले हैं।

कुछ अपनों के गम थे , पहले क्या थोडा कम थे।

कुछ समझ में नहीं आ रहा , ये कैसे कैसे गम हो चले हैं।

इम्तिहान ज़िन्दगी लिया करती है हर मोड़ पे ।

पर ये क्या ज़िन्दगी, के हर मोड़ इम्तिहान हो चले हैं।

तुम्हारी याद आए तो मैखाने की तरफ़ चल दिए , ना आए तो भी मैखाने की तरफ़ चल दिए , ज़िंदगी गुज़र जायेगी इसी तरह , ये सोच कर ...