May 24, 2008

ज़रूरत

एक दूसरे को जानने की ज़रूरत नहीं समझी,
एक हुए ऐसे , साथ रहने की ज़रूरत नहीं समझी।
लगता था मोहब्बत के सैलाब में बह के आए हैं,
उनहोंने किनारा तक ढूँढने की ज़रूरत नहीं समझी।
फूल थे , खुशबू थी, बागबां था हरा भरा,
एक माली भी रखने की ज़रूरत नहीं समझी।
ख़ुद मुवक्किल , ख़ुद वकील, ख़ुद ही मुंसिफ बने,
बुजुर्गों से भी सलाह की ज़रूरत नहीं समझी।
अब तो आलम है के इतने करीब हैं दोनों,
मैंने उसकी ,उसने मेरी ज़रूरत नहीं समझी।

तुम्हारी याद आए तो मैखाने की तरफ़ चल दिए , ना आए तो भी मैखाने की तरफ़ चल दिए , ज़िंदगी गुज़र जायेगी इसी तरह , ये सोच कर ...