May 26, 2008

चिराग

दरवाज़े की तख्ती पे मेरा नाम भी हो,
और ओहदा "मालिक मकान " भी हो।
कुछ एक लाख की बात है मिल ही जायेंगे,
इसी आस कफ़न किसी दिन सिल ही जायेंगे।
ख़ुद नहीं तो, अपने "चिराग" में तेल तो होगा,
उसका खुशनसीबी से कम से कम मेल तो होगा।
यही सोच के सुबह जाता है, देर रात आता है,
ये आम आदमी पूरी ज़िंदगी काट जाता है।

1 comment:

Rishabh Makrand said...

अंदाज़-ऐ-बयान बात को बदल देती है
वरना दुनिया में कुछ भी नया नही

तुम्हारी याद आए तो मैखाने की तरफ़ चल दिए , ना आए तो भी मैखाने की तरफ़ चल दिए , ज़िंदगी गुज़र जायेगी इसी तरह , ये सोच कर ...