जिंदगी मुझ से इन दिनों ज़रा खफा सी है।
किसी बेसाख , बेदर्द , बेवफा सी है।
भरे सावन को पतझड़ बना दिया इसने,
आज जाने ये कैसी चली हवा सी है।
सुबह आज फिर दोपहर होने चली थी,
गरज गरज जाने कहाँ से आई ये घटा सी है।
जिसकी याद में गुज़रे थे बीते दिन अपने,
उसके आने की ख़बर फ़िर से जवां सी है।
कितनी मोहब्बत उन्हें हम से है,
उनकी खामोशी ने की दास्ताँ बयां सी है।
कुछ ऐसी बातें जो दिल को छू जाएं , कुछ ऐसी बातें जो दिल से निकले, कुछ ऐसी ही बातें इस ब्लॉग में ग़ज़ल , नज्म और कविता के ज़रिये पेश करने की कोशिश की है। उम्मीद है पढने वालों को पसंद आएंगी।
July 2, 2008
सुकून
सुकून ऐ जिंदगी ढूँढते रह जायेंगें ।
तेरे बिना जिए तो मर के रह जायेंगे ।
जब जुबाँ ऐ शायर कोई बात कहने जाए ,
हर एक अल्फाज़ के मायने ढूँढते रह जायेंगे।
एक बार सुबह जवान होने की कोशिश तो करे,
बादल यूँ ही आसमां में घुमते रह जायेंगे।
जब आखरी साँस कोई शख्स लेता है,
करीब वाले सब देखते रह जायेंगे।
तेरे बिना जिए तो मर के रह जायेंगे ।
जब जुबाँ ऐ शायर कोई बात कहने जाए ,
हर एक अल्फाज़ के मायने ढूँढते रह जायेंगे।
एक बार सुबह जवान होने की कोशिश तो करे,
बादल यूँ ही आसमां में घुमते रह जायेंगे।
जब आखरी साँस कोई शख्स लेता है,
करीब वाले सब देखते रह जायेंगे।
May 27, 2008
तेरी ख़बर
अगर किसी रोज़ तेरे आने की ख़बर आ जाए,
जिस्म बेजान भी हो तो वापिस ये जाँ आ जाए।
तेरे दीवाने ने तेरे दर से मोहब्बत कर ली,
जाए किसी जानिब भी मगर लौट के फिर आ जाए।
जितने पैगाम तुझे भेजे हैं तेरे आशिक ने,
उतनी मेहनत से खुदा ढूंदो, तो वो मिल जाए।
कितनी शिद्दत से तुझे याद किया जाता है,
कोई समझे तो ये पैगाम तुझे दे आए।
अब तो हर वक्त ऐ "मन"इसी दुआ में कटता है।
तू अगर आए तो एक बार नज़र आ जाए।
May 26, 2008
चिराग
दरवाज़े की तख्ती पे मेरा नाम भी हो,
और ओहदा "मालिक मकान " भी हो।
कुछ एक लाख की बात है मिल ही जायेंगे,
इसी आस कफ़न किसी दिन सिल ही जायेंगे।
ख़ुद नहीं तो, अपने "चिराग" में तेल तो होगा,
उसका खुशनसीबी से कम से कम मेल तो होगा।
यही सोच के सुबह जाता है, देर रात आता है,
ये आम आदमी पूरी ज़िंदगी काट जाता है।
और ओहदा "मालिक मकान " भी हो।
कुछ एक लाख की बात है मिल ही जायेंगे,
इसी आस कफ़न किसी दिन सिल ही जायेंगे।
ख़ुद नहीं तो, अपने "चिराग" में तेल तो होगा,
उसका खुशनसीबी से कम से कम मेल तो होगा।
यही सोच के सुबह जाता है, देर रात आता है,
ये आम आदमी पूरी ज़िंदगी काट जाता है।
May 25, 2008
तेरे इश्क में
हमतेरे इश्क मे इतने मजबूर हो गए,
साँस लेने को फ़िर मजबूर हो गए ।
बस में होता तो दूरियां मिटा देते,
बस दूरियों से ही तो मजबूर हो गए।
उन के इजहार का असर ज़रा देखिये,
हम इकरार करने पे मजबूर हो गए ।
जो खाब देखो तो इस शिद्दत से देखा,
खाब ज़िंदगी बनने पे मजबूर हो गए।
आज लिखते हैं तो कलम रुक सी जाती है,
मगर रुक रुक के लिखने पे मजबूर हो गए ।
हमतेरे इश्क मे इतने मजबूर हो गए,
साँस लेने को फ़िर मजबूर हो गए ।
साँस लेने को फ़िर मजबूर हो गए ।
बस में होता तो दूरियां मिटा देते,
बस दूरियों से ही तो मजबूर हो गए।
उन के इजहार का असर ज़रा देखिये,
हम इकरार करने पे मजबूर हो गए ।
जो खाब देखो तो इस शिद्दत से देखा,
खाब ज़िंदगी बनने पे मजबूर हो गए।
आज लिखते हैं तो कलम रुक सी जाती है,
मगर रुक रुक के लिखने पे मजबूर हो गए ।
हमतेरे इश्क मे इतने मजबूर हो गए,
साँस लेने को फ़िर मजबूर हो गए ।
तेरे इश्क में
बहुत अरसे से एक गुबार सा है उसके अंदर ,
एक खुशमिजाज इंसान बीमार सा है उसके अंदर।
किसी एक लम्हे की गलती थी , कि कुछ ऐसा हुआ,
जो कभी हँसता था , जार जार सा है उसके अंदर।
वक्त को कोसता है और वक्त की सोचता है,
न जाने अक्स क्यों लाचार सा है उसके अंदर।
लोग कहते हैं तेरे इश्क में ऐसा नही होता,
ये मानने का नहीं कोई आसार सा है उसके अंदर।
एक खुशमिजाज इंसान बीमार सा है उसके अंदर।
किसी एक लम्हे की गलती थी , कि कुछ ऐसा हुआ,
जो कभी हँसता था , जार जार सा है उसके अंदर।
वक्त को कोसता है और वक्त की सोचता है,
न जाने अक्स क्यों लाचार सा है उसके अंदर।
लोग कहते हैं तेरे इश्क में ऐसा नही होता,
ये मानने का नहीं कोई आसार सा है उसके अंदर।
May 24, 2008
ज़रूरत
एक दूसरे को जानने की ज़रूरत नहीं समझी,
एक हुए ऐसे , साथ रहने की ज़रूरत नहीं समझी।
लगता था मोहब्बत के सैलाब में बह के आए हैं,
उनहोंने किनारा तक ढूँढने की ज़रूरत नहीं समझी।
फूल थे , खुशबू थी, बागबां था हरा भरा,
एक माली भी रखने की ज़रूरत नहीं समझी।
ख़ुद मुवक्किल , ख़ुद वकील, ख़ुद ही मुंसिफ बने,
बुजुर्गों से भी सलाह की ज़रूरत नहीं समझी।
अब तो आलम है के इतने करीब हैं दोनों,
मैंने उसकी ,उसने मेरी ज़रूरत नहीं समझी।
एक हुए ऐसे , साथ रहने की ज़रूरत नहीं समझी।
लगता था मोहब्बत के सैलाब में बह के आए हैं,
उनहोंने किनारा तक ढूँढने की ज़रूरत नहीं समझी।
फूल थे , खुशबू थी, बागबां था हरा भरा,
एक माली भी रखने की ज़रूरत नहीं समझी।
ख़ुद मुवक्किल , ख़ुद वकील, ख़ुद ही मुंसिफ बने,
बुजुर्गों से भी सलाह की ज़रूरत नहीं समझी।
अब तो आलम है के इतने करीब हैं दोनों,
मैंने उसकी ,उसने मेरी ज़रूरत नहीं समझी।
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तुम्हारी याद आए तो मैखाने की तरफ़ चल दिए , ना आए तो भी मैखाने की तरफ़ चल दिए , ज़िंदगी गुज़र जायेगी इसी तरह , ये सोच कर ...
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सब्र का इम्तिहान चल रहा है कुछ इस तरह, के अब बेसब्र हो चले हैं। पूरे हो रहें हैं अरमान कुछ इस तरह के अरमान कम हो चले हैं। जी भर सा गया है इस...
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***************************** हर शाम एक नया हुस्न सर उठाता है। हर शाम एक हुस्न खो देती है। किस लिए एक बेबस की लाज लुटती है, जाने ये दुनिया क...